
इजराइल— एक ऐसा देश जो दुनिया के नक्शे पर जितना छोटा है, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उसका उतना ही बड़ा प्रभाव है। खासकर खाड़ी देशों के लिए, यह नाम न सिर्फ कूटनीतिक तनाव का प्रतीक है, बल्कि एक ऐतिहासिक संघर्ष की निरंतरता भी है। पर सवाल है — खाड़ी देशों को इजराइल से इतनी चिढ़ क्यों है? और अमेरिका इसके साथ क्यों खड़ा रहता है?
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1. अरब-इजराइल युद्धों की विरासत: शुरुआत कहां से हुई?
1948 में इजराइल की स्थापना के साथ ही अरब देशों और इजराइल के बीच दुश्मनी शुरू हो गई। फिलिस्तीन के हिस्से को काटकर बनाए गए इजराइल को अरब दुनिया ने कभी स्वीकार नहीं किया। इसके बाद हुए युद्ध—1948, 1967, और 1973—ने इस दुश्मनी को और भी गहरा कर दिया।
इन युद्धों में बार-बार इजराइल ने अरब देशों को मात दी और फिलिस्तीनियों की भूमि पर क़ब्ज़ा बढ़ता गया, जिससे खाड़ी देशों का रोष और भी गहरा होता गया।
2. अमेरिका-इजराइल की ‘अनब्रेकेबल बॉन्ड’: क्यों है इतनी गहरी दोस्ती?
इजराइल को अमेरिकी समर्थन सिर्फ कूटनीतिक या सैन्य नहीं है, बल्कि यह आर्थिक और तकनीकी स्तर पर भी बेहद मजबूत है। अमेरिका हर साल अरबों डॉलर की सैन्य सहायता इजराइल को देता है। इसके पीछे कई कारण हैं:
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अमेरिका में प्रभावशाली यहूदी लॉबी
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इजराइल की मध्य-पूर्व में रणनीतिक स्थिति
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डेमोक्रेटिक वैल्यूज़ की समानता
इसी कारण अमेरिका अक्सर संयुक्त राष्ट्र में इजराइल के विरोध में आए प्रस्तावों को वीटो करता रहा है, जिससे अरब देशों में नाराज़गी और गहराती है।
3. खाड़ी देशों की नाराज़गी: धर्म, भू-राजनीति और नेतृत्व का सवाल
खाड़ी देश—विशेषकर सऊदी अरब, क़तर, ईरान और यमन—इजराइल को एक आक्रामक ज़ायोनी ताक़त मानते हैं, जिसने फिलिस्तीनी मुसलमानों के अधिकारों को कुचला है। उनके लिए यह सिर्फ एक क्षेत्रीय विवाद नहीं बल्कि इस्लाम बनाम ज़ायोनिज़्म की लड़ाई है।
इजराइल के साथ खुले रिश्ते रखने वाले खाड़ी देश भी अक्सर भीतर से आलोचना के शिकार होते हैं, क्योंकि यह मुद्दा सीधे मुस्लिम अस्मिता और उम्मा से जुड़ा हुआ है।
4. लेकिन बदल रही हैं हवाएं: अब्राहम समझौता और नई दोस्तियाँ
2020 में जब यूएई, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने अमेरिका की मध्यस्थता में इजराइल के साथ रिश्ते सामान्य किए (अब्राहम अकॉर्ड्स), तब यह स्पष्ट हुआ कि राजनीति अब बदल रही है। अब ईरान विरोध जैसे सामरिक मुद्दे, आर्थिक साझेदारी और तकनीकी सहयोग धार्मिक भावनाओं से ऊपर आने लगे हैं।
हालांकि सऊदी अरब जैसे देश अब भी सतर्क हैं, लेकिन कूटनीतिक संकेत बता रहे हैं कि वे भी भविष्य में इजराइल से संबंध सुधार सकते हैं।
इजराइल—एक छोटा देश, बड़ी राजनीति
इजराइल भले ही भौगोलिक रूप से छोटा हो, लेकिन उसकी सेना, तकनीक और कूटनीति ने उसे पश्चिम एशिया का सबसे ताकतवर खिलाड़ी बना दिया है। खाड़ी देशों की नाराज़गी का कारण इतिहास, धर्म और भू-राजनीति का मिश्रण है, जबकि अमेरिका की दोस्ती की जड़ें रणनीतिक हितों और घरेलू राजनीति में हैं।
मध्य-पूर्व की राजनीति में इजराइल हमेशा एक ‘हॉट बटन’ बना रहेगा — और इसके साथ-साथ भारत जैसे देशों के लिए भी यह एक बैलेंसिंग एक्ट बना रहेगा।
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